बिछड के उससे सकून की एक सांस भी ना मैंने पाई
फिर भी ज़िंदा हूँ अफ़सोस जिंदगी ही बेहया
मैंने पाई
वो चेंगेज़ का अत्याचार था के नादिर का
कत्ले-आम
कसूर कमज़ोर हुकमरानो ने किया था सज़ा मैंने
पाई
मुहं आगे कुछ भी कहे मुखालिफ मुझसे है एक जहाँ
कसूर गए गुज़रे अज़दाद ने किया था सज़ा मैंने
पाई
फितरत से ही धवंसक हूँ इसे बर्बाद
करने में लगा हूँ
कहते है बहुत खूबसूरत थी जब ये दुनिया
मैंने पाई
मुझ को पता था उसके पावों
के नीचे बसी है जन्नत
चरण दाब कर रोज, अपनी अम्मा के दुआ मैंने
पाई
वक्त के चलन ने कटी पतंग बना कर छोड़ दिया
था
पहुँच गया बुलंदीयों पर जब मुवाफिक हवा
मैंने पाई
कांटे की नोक से सीखा चुभ कर अपना बचाव
करना
नाज़ुक फूलो से आलम मुस्कराने की अदा मैंने
पाई
चेंगेज़,नादिर-हमलावार-लुटेरे,हुकमरानो-शासकों,मुखालिफ-विरोधी,
अज़दाद-पूर्वजो,फितरत-प्रवर्ति,बुलंदीयों-ऊँचाइयों,मुवाफिक-सहायक.